लोकतंत्र का माॅडल बना लाल आतंक का गढ़
हजारीबाग। हजारीबाग जिले के टाटीझरिया का कोल्हू गांव। बन्हे से आठ किलोमीटर दूर कच्ची सड़क से जैसे ही इस गांव में प्रवेश करते हैं, सबकुछ अन्य गांव की तरह ही सामान्य नजर आता है, लेकिन जैसे ही चुनाव पर चर्चा शुरू होती है तो समझ में आता है कि यहां लोकतंत्र को सशक्त बनाए रखने के लिए ग्रामीणों ने बहुत कुछ झेला है।
चुनाव में नक्सलियों की गोलियों से कई हुए लहूलुहान
चुनाव में नक्सलियों की बंदूक से निकली गोलियों ने इस गांव में लोकतंत्र को कई बार लहूलुहान किया है। नक्सलियों के खौफ में जीने वाला यह गांव अब लोकतंत्र का माॅडल बन चुका है।
आठ पंचायतों वाले टाटीझरिया प्रखंड में पिछले दो चुनाव में सबसे अधिक वोटिंग कोल्हू गांव में हो रही है। 2000 के चुनाव के दौरान जहां मतदान का प्रतिशत 15 से 20 प्रतिशत तक ही था वह 2014 और बाद के हुए चुनावों बढ़ कर 70 से 85 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
साल 2000 में हुई थी सबसे बड़ी घटना
नक्सलियों का गढ़ रहे इस गांव में सबसे बड़ी घटना 2000 में विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी, जब बारूदी सुरंग विस्फोट में चुनाव ड्यूटी में तैनात सब- इंस्पेक्टर शंकर राम व बीएसएफ 22 बटालियन मध्य प्रदेश के लांस नायक नाथ सिंह बलिदान हो गए थे।
इनके साथ लोकतंत्र का झंडा उठाए चुनाव करवाने जा रहे उत्क्रमित मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक राधानाथ रविदास को पैर में गोली मार दी गई थी। बम विस्फोट करने के बाद नक्सलियों से पहाड़ी के पीछे से घात लगाकर हमला किया था। तब से अब तक में कहानी काफी बदल चुकी है।
बूथ हटाए जाने से अब भी परेशान हैं ग्रामीण
घटना के बाद कोल्हू के पास से मौजूद बेड़म गांव में बने बूथ को हटा दिया गया। इस वजह से बेड़म ,कोल्हू, मायापुर का बूथ मध्य विद्यालय कोल्हू में ही रहता है।
स्थानीय युवाओं में केदार गंझू, रामलाल भुइयां, संतोष गंझू, सेवा प्रसाद और अजीत कुमार बताते हैं कि हमलोगों वोट डालने दूसरे गांव जाने में परेशानी होती है। हमारा बूथ हमारे गांव में रहे। अब कोई खौफ नही है। हमारा बूथ यदि हमारे गांव में हो तो मतदान का प्रतिशत भी बढ़ेगा।
क्या कहते हैं ग्रामीण
जब हमारे गांव आने वाले रास्ते पर विस्फोट हुआ तो थोड़े दिनों के लिए क्षेत्र में दहशत जरूर रहा, पर उसका कोई प्रभाव वोट पर नहीं पड़ा था। नक्सली पहले हम लोगों को डराते-धमकाते थे। अब हम भयमुक्त हैं- बुधन महतो, स्थानीय ग्रामीण।
विस्फोट जब हुआ था तो उस समय गांव में कच्ची सड़क थी। अब तो पक्की सड़क बन गई है। लोग विकास के मुद्दे पर वोट करेंगे, ऐसा ही माहौल है। नक्सली पहले या तो मतदान करने से मना करते थे या अपने बताए हुए प्रत्याशी के पक्ष में वोट देने का फरमान जारी करते थे। उनके जाने से बहुत राहत मिली- दुर्गा गिरी, स्थानीय ग्रामीण।