आईआईटी (IIT) आईएसएम (ISM) के पास बनेगा RCG सेंटर....
धनबाद। आईआईटी आईएसएम के पास जल्द ही एक क्षेत्रीय भूगणित केंद्र (आरजीसी) होगा। अगस्त अंत तक यह आईएसएम परिसर में स्थापित होगा। इस केंद्र के माध्यम से प्राकृतिक खतरों आदि का अध्ययन करने के साथ ही भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की सटीक निगरानी भी होगी।
भौगोलिक स्थिति का पता लगाना अब होगा आसान
यह कोयले के कारण होने वाले भूस्खलन के संभावित क्षेत्रों, खनन एवं खनन से संबंधित अन्य गतिविधियों का अध्ययन करेगा। केंद्र का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। आईएसएम ने अगस्त तक चालू होने की संभावना जताई है।
भूगणित आकार, अभिविन्यास और द्रव्यमान वितरण को सटीक रूप से मापने का विज्ञान है और यह समय के साथ बदलाव की गणना करता है। यह पृथ्वी की सतह के तत्वों की सटीक माप और पृथ्वी की सतह पर उनकी भौगोलिक स्थिति के निर्धारण का भी आकलन करता है।
आईएसएम के खनन इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के परियोजना प्रमुख अन्वेषक डा.वसंत गोविंद कुमार विल्लुरी ने बताया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से प्रदान किए गए 1.5 करोड़ रुपये के फंड से केंद्र स्थापित किया जा रहा है।
यह केंद्र संस्थान के भूकंपीय वेधशाला और एप्लाइड जियोफिजिक्स, एप्लाइड जियोलाजी और माइनिंग इंजीनियरिंग विभाग की अन्य सुविधाओं के साथ समन्वय कर काम करेगा।
केंद्र स्थापित करने से पहले की जा रही अच्छी खासी तैयारी
केंद्र स्थापित करने से पहले पिछले एक वर्ष से देश के विभिन्न संस्थानों में स्थापित केंद्रों का अध्ययन किया गया। इसमें आईआईटी कानपुर का नेशनल जियोडेसी सेंटर (एनजीसी), क्षेत्रीय केंद्र मोतीलाल नेहरू नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमएनएनआईटी) इलाहाबाद, आईआईटी बाॅम्बे, भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान तिरुवनंतपुरम, अन्ना विश्वविद्यालय चेन्नई और मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान भोपाल शामिल है। यह प्रोजेक्ट संस्थान के उपनिदेशक प्रो.धीरज कुमार के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।
भविष्य में टेक्टोनिक प्लेटों की गति का भी करेंगे अध्ययन
केंद्र सर्वेक्षण, फोटोग्रामेट्री, रिमोट सेंसिंग, इमेज प्रोसेसिंग, जीआईएस, जीपीएस और हाइड्रोलाजी के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले बीटेक और एमटेक छात्रों के लिए हितकारी होगा।
उपनिदेशक प्रो. धीरज कुमार ने बताया कि प्रारंभिक चरण में खनन क्षेत्रों में धसान और प्राकृतिक खतरों आदि के क्षेत्र में अध्ययन करना है और बाद में टेक्टोनिक प्लेटों की गति आदि जैसे अन्य क्षेत्रों का भी अध्ययन करेंगे।
झारखंड के विभिन्न हिस्सों और अन्य जगहों पर माइनिंग करने वाली कंपनियों के साथ-साथ शहर की योजनाओं के लिए यह सबसिडेंस जोन मैपिंग आदि में मदद करेगा।
इससे आगामी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं आदि के सुचारू निष्पादन में मदद मिलेगी। सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं परियोजना के सह-प्रधान अन्वेषक प्रो.श्रीनिवास पसुपुलेटी विशेष सहयोग कर रहे हैं।