जान हथेली पर लेकर तीन युवकों ने बचाई तीन जिंदगी....
सोमवार की रात बारिश बंद हो चुकी थी। जोगता 11 नंबर बस्ती के लोग घरों में सो रहे थे। तभी अचानक धमाका हुआ, जमीन थरथराने लगी, गोफ बना और उसका दायरा बढ़ने लगा। एक मकान और मंदिर भरभराकर उसमें समा गया।
जान हथेली पर लेकर तीन युवकों ने बचाई तीन जिंदगी
मकान में सोया 43 साल का श्याम बहादुर, उनका बेटा 14 साल का अरुण कुमार व नौ वर्षीय तरुण कुमार भी उसमें गिर गए। चीख पुकार मच गई। पड़ोसी जाग गए, वे भी जान बचाने को बाहर भागे, वहां का नजारा देखा तो हड़कंप मच गया। बावजूद अपने पड़ोसियों को जमीन में दफन होते देख मोहल्ले के तीन युवकों ने जान हथेली पर ली और दौड़ पड़े उनको बचाने। फिर क्या था, सामूहिक कोशिश रंग लाई, तीन जिंदगियों को ये मौत के मुंह से बचा लाए।
न आव देखा न ताव बस गोफ में कूद गए तीनों
उनको बचाने वाले राम बहादुर ने बताया कि रात सवा दो बजे थे। हम भी बाहर निकले थे, भाई का मकान गोफ में गिर गया था। तब भाई और बच्चों का नाम लेकर चिल्लाए। वे दिखे, एक दीवार के मलबे में दबे हुए। तब कलेजा मुंह को आ गया। तब तक पड़ोसी धनपत भुइयां और विनोद भी आ गए। तीनों ने तय किया कि जो होगा देखा जाएगा, गोफ से इनको निकाल कर रहेंगे। बस गोफ में कूद गए। जमीन दरक रही थी, न जाने कहां से ताकत आ गई, डर भी भाग गया था, हम तीनों किसी प्रकार मलबे से तीनों को निकाल लाए। उनकी हालत खराब थी, तुरंत अस्पताल ले गए।
धधकती आग पर रह रही 13 सौ की आबादी
धनपत व राम बहादुर ने बताया कि जोगता 11 नंबर बस्ती के नीचे आग धधक रही है। पूर्व में हुए खनन के कारण यहां धंसान कई बार हो चुका है, भूमिगत आग भी बढ़ रही है। यहां 13 सौ की आबादी है, जो जमीन से निकलती गैस के बीच जीवन गुजार रही। काल के साए में यहां जिंदगी रोज दौड़ती है, आखिर जाएं तो कहां जाएं। कई साल से पुनर्वास की मांग उठा रहे, बावजूद कोई सुन नहीं रहा। झरिया पुनर्वास विकास प्राधिकार के प्लान में बस्ती का भी नाम है। इधर बीसीसीएल एजीएम संजय कुमार का कहना है कि राष्ट्रीयकरण के पूर्व यहां से कोयला निकाला गया था। इधर बारिश भी हुई इसलिए जमीन धंस गई। यहां से लोगों को हटने के लिए कई बार नोटिस दिया गया। पुनर्वास के लिए आवास दिखाए, मगर लोग जाने को तैयार नहीं है।
पांच परिवार के सिर से छिन गई छत
इस घटना में राम बहादुर का घर दरक गया है। वह परिवार के साथ नीम के पेड़ के नीचे छावनी बनाकर रह रहे हैं। विनोद भी बच्चों के साथ पड़ोसी के घर शरण लिए है। धनपत बगल की एक दुकान की छावनी में अपना सामान रखे हैं। इनके घर ऐसे दरक गए हैं कि वहां रहना खतरे से खाली नहीं। श्याम बहादुर का घर तो ढह ही चुका है। कारू भुइयां अंगारपथरा रिश्तेदार के यहां परिवार को लेकर चला गया। कारू ने बताया कि मजदूरी करके जी लेंगे। यहां रहना तो खतरे से खाली नहीं। बीसीसीएल कर्मी सरयू भुइयां को निचितपुर टाउनशिप में घर मिल गया है।